
इंसान पुनरावृत्ति के अनुसार, अपने आकर्षण चुनता है, आकर्षण की पुनरावृत्ति उसमें स्वाद उत्पन्न करती है, स्वाद अपना, बिषय चुनते हैं, बिषय को दोहराने से, शौक बनता है, शौक से आदत, इन्ही आदतों का भण्डार, आपका चरित्र बनता है, इंसान , जिन गुणों की पुनर्वृत्ति करता है, वो प्रकृति के घटक हैं, जो इंसान के पूरे जीवन का सार माने जाते हैं, इन 3 गुणों को, जानने के लिए, नीचे बटन पर क्लिक करें

चौंकने वाली बात है, कि जिस व्यक्ति ने, युद्द के दौरान, शस्त्र न उठाने का वचन लिया हो, वो युद्द मैं, किसी के संहार की बात कैसे कर सकता है ?, मैं यहाँ तर्क करूँगा तो आप कहोगे कि, कृष्ण तो भगवान् थे,, मैं भी मानता हूँ, कृष्ण भगवान् ही थे, पर आजकल वो इंसानों के पचड़ों मैं क्यों नहीं पड़ते ? कहीं ऐसा तो नहीं, कि कृष्ण के ज्ञान को, हमारे मीडियेटरों ने तोड़ मरोड़ कर बताया है, नीचे बटन पर क्लिक करके, तर्क का जवाब जानें

किसी भी व्यक्ति के अंदर, आध्यात्मिक विकास उसकी उम्र और उसकी रूचि के अनुसार धीरे या तेज स्पीड से होता है, इसकी गति मैं भिन्नता का कारण है, बिषयों के प्रति हमारे आसक्ति , आध्यात्मिक विकास अपने भीतर की अनुभूति है, जबकि बाहरी लोगों को, आपमें कोई परिवर्तन दिखाई नहीं देता, कैसे करें स्वयं का, आध्यात्मिक विकास, और किन किन सावधानियों को बरतना चाहिए, जानने के लिए, नीचे बटन पर क्लिक करें

तनाव एक ऐसा विषय है, जिसके कारण, पूरी पृथ्वी पर, प्रत्येक देश या समाज के, हर परिवार मैं, लगभग सभी व्यक्ति जूझ रहे हैं, बड़े बड़े देशों के, नामी वैज्ञानिक और, डॉक्टर, सैकड़ों बर्षों से इस बिषय पर, हजारों प्रकार के, थयोरिकल और प्रैक्टिकल, शोध कर रहे हैं, पर ये परेशानी है, कि कम या ख़त्म होने, का नाम ही नहीं लेती,, तो क्या ये वैज्ञानिक, गलत दिशा मैं, प्रयास कर रहे हैं, जानने के लिए, बटन पर क्लिक करें

ध्यान लगाना, इस शब्द को, हम सभी जानते हैं, हमारी संस्कृति मैं, प्रचलित है, परन्तु आक्रांताओं के आतंक, हमारे भ्रम और कुरीतियों के कारण, हमने न जाने ऐसे, कितने शब्दों के अर्थों को, लाभरहित और निष्क्रिय बना दिया, इस शब्द को,बोलने के साथ ही हम,, भ्रम के शिकार हो जाते हैं, क्योंकि हम Pronounce करते हैं, ध्यान लगाना, जबकि इसका सही अर्थ है, ये नहीं है, अर्थ जानने के लिए बटन पर क्लिक करें

धर्म का अर्थ, यदि पूजा पाठ, जप – तप या कठोर नियमों का पालन करना होता, तो ये काम तो, दैत्य, असुर और राक्षस भी करते हैं, अपनी यादों को ताजा करो तो, प्राचीन काल मैं, ये राक्षस, मनुष्यों से भी कठोर उपासना विधियों का, प्रयोग करते थे, तो क्या हम ये मानें की वे सभी धार्मिक थे, यदि ऐसा नहीं है, तो हम सभी स्वयं को, धार्मिक क्यों समझ लेते हैं ?, आइये धर्म का सही अर्थ जानने के लिए, बटन पर क्लिक करें